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सबकुछ वैदिक ही है

सबकुछ वैदिक ही है "वेद से तात्पर्य ज्ञान से है, वैदिक मार्ग से तात्पर्य उस मार्ग से है जो ज्ञान-पूर्ण ज्ञान-शुद्ध  ज्ञान प्राकृतिक विधान के पूर्ण सामर्थ्य पर आधारित है, यह सृष्टि एवं प्रशासन का मुख्य आधार है, जो सृष्टि की अनन्त विविधताओं को पूर्ण सुव्यवस्था के साथ शासित करता है इसीलिये वेद को सृष्टि का संविधान भी कहा गया है । प्राकृतिक विधान की यह आंतरिक बुद्धिमत्ता व्यक्तिगत स्तर पर मानव शरीरिकी की संरचना एवं कार्यप्रणाली का आधार है एवं वृहत स्तर पर यह ब्रह्माण्डीय संरचना सृष्टि का आधार है । जैसी मानव शारीरिकी है, वैसी ही सृष्टि है । ‘यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे’ प्रत्येक व्यक्ति के शरीर के अन्दर विद्यमान इस आंतरिक बुद्धिमत्ता को इसकी पूर्ण संगठन शक्ति को प्रदर्शित करने एवं मानव जीवन एवं व्यवहार को प्राकृतिक विधानों की ऊर्ध्वगामी दिशा में विकास करने के लिए पूर्णतया जीवंत किया जा सकता है, ऐसा करने से कोई भी व्यक्ति प्राकृतिक विधानों का उल्लंघन नहीं करेगा एवं कोई भी व्यक्ति उसके स्वयं के लिए अथवा समाज में किसी अन्य व्यक्ति के लिए दुःख का आधार सृजित नहीं करेगा। जब हम वैद...